जानें भारत का पहला सौर राजमार्ग कहां बनेगा और इसके क्या फायदे होंगे

भारत के पहले सौर राजमार्ग जल्द ही संचालित किए जाएंगे और इसके क्या फायदे हो सकते हैं. साथ ही जानेंगे की भारत में इनका कौन सा सौर राजमार्ग मॉडल संचालित होगा.

आगामी समृद्धि महामार्ग (Samruddhi Mahamarg) पर प्रस्तावित सौर पैनल परियोजना, सौर राजमार्ग जिसे मुंबई-नागपुर सुपर कम्युनिकेशन एक्सप्रेसवे (Mumbai-Nagpur super communication expressway) के रूप में भी जाना जाता है, प्रतिदिन लगभग 1.60 लाख घरों में रोशनी कर सकती है.

MSRDC के संयुक्त प्रबंध निदेशक चंद्रकांत पुलकुंडवार (Chandrakant Pulkundwar) के सौर राजमार्ग अनुसार यह परियोजना एक्सप्रेसवे को एक ग्रीन कॉरिडोर बना देगी.

लगभग 700 किमी लंबा, 8-लेन चौड़ा एक्सप्रेसवे, जो महाराष्ट्र की दो राजधानियों यानी मुंबई और नागपुर को जोड़ता है.सौर राजमार्ग

सौर राजमार्ग प्रोजेक्ट को कहां बनाया जाएगा?

चरण 1 में प्रारंभिक योजना के अनुसार, महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) कॉरिडोर के साथ 25 में से सात इंटरचेंज पर सौर पैनल स्थापित करने का इरादा रखता है.

सौर राजमार्गसात स्पॉट अमरावती में विरुल, धामनगांव और शिवनी (Virul, Dhamangoan और Shivni), तालेगांव में गावनेर (Gavner), वाशिम में करंज और मालेगांव (Karanj and Malegoan), बुलढाणा में महेकर (Mehekar), कोकमथान अहमदनगर हैं.

ऐसा बताया जा रहा है कि इंटरचेंज का चयन इसलिए किया गया है क्योंकि इसे विकसित करने के लिए यहाँ बहुत बड़ी जगह उपलब्ध है. प्रत्येक चयनित इंटरचेंज क्षेत्र 40 एकड़ से अधिक है.

सौर राजमार्ग प्रोजेक्ट में कितना खर्चा आएगा?

यह प्रोजेक्ट एक्सप्रेस-वे को ग्रीन कॉरिडोर बनाएगा. सौर पैनल परियोजना पर लगभग 700 करोड़ रुपये खर्च होंगे और उक्त परियोजना का जीवन अगले 25 वर्षों के लिए होगा.

एक अधिकारी के मुताबिक शुरुआती 10 साल में परियोजना की लागत का भुगतान कर दिया जाएगा और उसके बाद इससे राजस्व अर्जित करना शुरू किया जाएगा. चंद्रकांत पुलकुंडवार (Chandrakant Pulkundwar) के अनुसार यह परियोजना समृद्धि महामार्ग राजस्व में वृद्धि का एक हिस्सा है.

उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. इन सौर पैनलों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली बिजली को सीधे उक्त वितरक के इलेक्ट्रिक ग्रिड से जोड़ा जाएगा और बेचा जाएगा.”

“एक्सप्रेसवे पर इंटरचेंज का चयन किया गया है क्योंकि सौर पैनल स्थापित करने के लिए बहुत बड़ी जगह उपलब्ध है. वास्तव में, प्रत्येक चयनित इंटरचेंज क्षेत्र 40 एकड़ से अधिक है. एक बार परियोजना पूरी हो जाने के बाद, यह लाखों घरों में रोशनी कर सकती है; एक्सप्रेसवे पर बिजली की मांग को पूरा करने के अलावा भी, ”चंद्रकांत पुलकुंडवार ने कहा.

सौर राजमार्ग प्रोजेक्ट से होने वाले फायदों

एशिया और प्रशांत के लिए GGGI के क्षेत्रीय तकनीकी प्रमुख गुलशन वशिष्ठ (Gulshan Vashistha) के अनुसार, “यह पहला अक्षय (Renewable) ऊर्जा प्रोग्राम है, जो भारत में एक बड़ी सड़क बुनियादी ढांचा परियोजना के साथ जुड़ा हुआ है.”

इस परियोजना का अपेक्षित दीर्घकालिक प्रभाव परियोजना के 25 साल के जीवनकाल के दौरान CO2 उत्सर्जन को 10 मिलियन टन कम करना और लगभग 200 हरित रोजगार सृजित करना है.

यह परियोजना सुपर हाईवे पर चार्जिंग स्टेशन बनाने की MSRDC की अतिरिक्त योजना का मार्ग प्रशस्त करेगी.

इन स्थानों से रोजाना कुल 161 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा.

एक बार परियोजना पूरी हो जाने के बाद, यह लाखों घरों में रोशनी कर सकती है. एक्सप्रेसवे पर बिजली की मांग को पूरा करने के अलावा भी.

क्या अन्य देशों में भी इस प्रकार के सौर राजमार्ग प्रोजेक्ट हैं?

भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है लेकिन अन्य कई देशों में इसे लागू किया गया है. चीन ने आज से लगभग तीन साल पहले ही सौर ऊर्जा से चलने वाले राजमार्ग का परीक्षण किया जो इलेक्ट्रिक कारों को चार्ज कर सकता है. यह मॉडल थोड़ा अलग और एडवांस्ड कांसेप्ट है.

यूरोप में राजमार्गों के लिए सौर कैनोपी (Solar Canopy) पर काम किया जा रहा है. यूरोप में प्रौद्योगिकी नेताएं मिलकर ऑस्ट्रियाई प्रौद्योगिकी संस्थान (Austrian Institute of Technology), जर्मनी में फ्रौनहोफर ISE (Fraunhofer ISE in Germany), और

स्विट्जरलैंड में फोर्स्टर इंडस्ट्रीटेक्निक (Forster Industrietechnik in Switzerland) – स्वच्छ विद्युत उत्पादन के लिए विशाल, कम-उपयोग किए गए सड़क नेटवर्क में टैप करने के लिए राजमार्गों के लिए एक सौर कैनोपी प्रणाली विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं.

भारत में इसकी शुरुआत हो रही है आगे इसे और विकसित करने की उम्मीद है.

गुवाहाटी अब सौर ऊर्जा द्वारा संचालित भारत का पहला रेलवे स्टेशन है.यहाँ सौर पैनलों को स्थापित करने की परियोजना अप्रैल 2017 में शुरू की गई थी. गुवाहाटी रेलवे स्टेशन की छत पर लगभग 2352 सौर मॉड्यूल 700 किलोवाट पॉवर उत्पन्न करने की क्षमता के साथ स्थापित किए गए हैं.

रूफ-टॉप-सौर ऊर्जा संयंत्र में सौर पैनल स्थापित किए गए हैं. सौर-संचालित स्टेशन का लक्ष्य कार्बन-पदचिह्न को कम करने के साथ-साथ बिजली की लागत में कटौती करना है. भारतीय रेलवे के अनुसार परियोजना की लागत का अनुमान 6.7 करोड़ रुपये है.

20 मीटर लंबी और 7 मीटर चौड़ी यह नौका-यान 140 वर्ग-मीटर की सौर पट्टिका से ढकीं हुई है जिसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता 20 किलो-वाट है। उत्पादित ऊर्जा से 20 किलो-वाट की दो बिजली की मोटर (प्रत्येक बेड़े में एक) प्रचालित की जाती है। यह नौका-यान दो जहाजी-बेड़ों में विभाजित होने के कारण 7.5 समुद्री मील की गति से चलने में सक्षम है। नौका के दोनों बेड़ों में 50 kWh की क्षमता वाली 700 किलोग्राम की लिथियम-आयन बैट्री लगायी गयी है।

इस नौका का योजना-चित्र Navgathi एवं AltEn के व्यापक और विशिष्ठ अनुभव से की गयी है तथा अभिकलनात्मक जटिलता द्रव गतिकी के उपयोग से इसकी जलगतिक विश्लेषण की गयी है। इस नौका नौका-यान की योजना-चित्र यात्री नौका के अनुरूप की गयी है जो की वाइकोम और तवनकादावु के बीच चलायी जाएगी।

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