Bhautik Parivartan कुछ पदार्थों में ऐसा होता हैं कि परिवर्तन का कारण हटाने पर पुनः प्रारम्भिक पदार्थ प्राप्त हो जाता है ऐसे परिवर्तन को भौतिक परिवर्तन कहते है । जबकि दूसरी तरफ कुछ परिवर्तन ऐसे होते है जिसमें पदार्थों के संघटन ही बदल जाते हैं और नये पदार्थ बन जाते है , ऐसे परिवर्तन को रासायनिक परिवर्तन कहते हैं ।
आप सब यहाँ Bhautik Parivartan का Branches और सभी Definition के बारें में पढ़ सकते हैं।आज हम आपको अपनी इस पोस्ट के माध्यम से | Bhautik Parivartan का Branches और के सभी भाग के बारे में संपूर्ण जानकारी Hindi में आपको प्रदान करेंगे।
इस पोस्ट में हम Bhautik Parivartan है | को समझाने के लिए Bhautik Parivartan की परिभाषा के माध्यम से और Branches और जो कि Hindi में हैं इनकी सहायता से आपको समझाने का भरपूर प्रयास करेंगे।
इस पोस्ट में क्या है ?
भौतिक परिवर्तन (physical Change)
वे परिवर्तन जिनमें वस्तुओं के भौतिक गुण जैसे-आकार, अवस्था, ताप इत्यादि अस्थाई रूप से बदल जाते हैं परंतु उनके संघटन तथा भार में परिवर्तन नहीं होता, उनको भौतिक परिवर्तन कहते हैं।
ये वे परिवर्तन है जिसमें पदार्थ के भौतिक गुण तथा अवस्था में परिवर्तन होता है , परन्तु उसके रासायनिक गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है । साथ ही परिवर्तन का कारण हटाने पर पुनः मूल पदार्थ प्राप्त होता है जैसे कि जल ( H2O ) द्रव अवस्था में होता है गर्म करने पर गैसीय अवस्था वाष्प ( H2O ) बनाता हैं तथा ठंडा करने पर ठोस अवस्था बर्फ ( H2O ) बनाता है ।
लोहे का चुम्बक बनना , नौसादर ( NH4Cl ) का उर्ध्वपातन शक्कर का पानी में विलय होना आदि इसके अन्य उदाहरण है ।
भौतिक परिवर्तन के गुण (Bhautik Parivartan)
1 . पदार्थ के केवल भौतिक गुणों यथा अवस्था , रंग , गंध , आदि में परिवर्तन होता है ।
2 . परिवर्तन का कारण हटाने पर पुनः प्रारम्भिक पदार्थ प्राप्त होता है ।
3 . यह परिवर्तन अस्थायी होता है ।
4 . नये पदार्थ का निर्माण नहीं होता है ।
भौतिक परिवर्तनों (Bhautik Parivartan) के मुख्य बिन्दु –
- इन परिवर्तनों के फलस्वरूप कोई नया पदार्थ नहीं बनता।
- इसमें रासायनिक संगठन तथा आण्विक संरचना में कोई अंतर नहीं आता है।
- इस परिवर्तन में मूल पदार्थ के रासायनिक गुण नहीं बदलते।
- ये उत्क्रमणीय होते हैं तथा ये परिवर्तन अस्थाई होते हैं।
भौतिक परिवर्तनों (Bhautik Parivartan) के कुछ सामान्य उदाहरण हैं :-
(i) बर्फ का गलन (जल बनना)
जब बर्फ को गर्म किया जाता है, वह गलकर जल बनाता है। यद्यपि बर्फ और जल भिन्न दिखाई देते हैं, वे दोनों जल के अणुओं के बने हैं। अतः, बर्फ के गलन के दौरान नये रासायनिक पदार्थ नहीं बनते हैं।
इसलिए, बर्फ के गलन से जल का बनना एक भौतिक परिवर्तन है। जब जल को ठण्डा किया जाता है (जैसाकि रेफ्रिजरेटर में), तो जल ठोसीकृत होकर बर्फ बनाता है। यह जल का हिमीकरण कहलाता है। जल के हिमीकरण से बर्फ का बनना भी एक भौतिक परिवर्तन है।
(ii) जल का हिमीकरण (बर्फ बनना)
जब जल को गर्म किया जाता है, वह क्वथन कर (उबल कर) भाप बनाता है। यद्यपि भाप और जल भिन्न दिखाई देते हैं, वे दोनों जल के अणुओं के बने हैं। अतः, जल के क्वथन के दौरान कोई नया रासायनिक पदार्थ नहीं बनता है।
इसलिए, जल के क्वथन से भाप का बनना एक भौतिक परिवर्तन है। जब भाप को ठंडा किया जाता है, वह संघनित (द्रवित) होकर जल बनाती है। भाप के संघनन (या द्रवण) से जल का बनना भी एक भौतिक परिवर्तन है।
(iii)जल का क्वथन (भाप बनना)
हम चीनी मिट्टी की प्याली में जल लेते हैं और उसमें थोड़ा साधारण लवण (नमक) विलेय करते हैं। लवण जल में विलुप्त हो जाता है और लवण-विलयन बनता है। इसलिए, लवण का विलयन बनाने में परिवर्तन होता है। हम अब लवण विलयनधारी इस चीनी-मिट्टी की प्याली को बर्नर पर तब तक गर्म करते हैं जब तक सम्पूर्ण जल वाष्पित हो जाता है।
चीनी-मिट्टी की प्याली में सफेद चूर्ण बच जाता है। यदि हम इस सफेद चूर्ण को चखते हैं, हम पायेंगे कि वह साधारण लवण (नमक) है। यह वही साधारण लवण है जिसे हमने पहले जल में घोला था। इसका अर्थ है कि जल में साधारण लवण घोलकर लवण विलयन बनाने में कोई नया रासायनिक पदार्थ नहीं बनता है। अतः, विलयन का बनाना एक भौतिक परिवर्तन है।
(iv) विद्युत बल्ब का चमकना
जब विद्युत-बल्ब का स्विच चालू किया जाता है, उसके तन्तु से विद्युत-धारा प्रवाहित होती है। बल का तन्तु श्वेत तप्त हो जाता है और चमकने लगता है तथा प्रकाश देता है। जब विद्युतधारा के स्विच को बंद कर दिया जाता है
तन्तु अपनी सामान्य स्थिति में लौट आता है और बल्ब चमकना बंद कर देता है। इस प्रक्रम के दौरान बल्ब में कोई नया पदार्थ नहीं बनता है। इसलिए, किसी विद्युत बल्ब का चमकना एक भौतिक परिवर्तन है ।
(v) काँच के गिलास का टूटना
जब एक काँच का गिलास टूटता है, उसके अनेक टुकड़े हो जाते हैं। काँच के गिलास का प्रत्येक टूटा हुआ टुकड़ा अभी भी काँच ही होता है। इसलिए,काँच के गिलास के टूटने के दौरान, काँच का केवल आकार और बाह्य आकृति परिवर्तित होती है परन्तु कोई नया पदार्थ नहीं बनता है। इसलिए, काँच के गिलास का टूटना एक भौतिक परिवर्तन है।
रासायनिक परिवर्तन (Chemical Changes)
ये वे परिवर्तन है जिसमें पदार्थ के रासायनिक गुणों तथा संघटन में परिवर्तन होता है तथा नया पदार्थ बनता है । रासायनिक परिवर्तन होने पर , परिवर्तन का कारण हटाने पर आवश्यक नहीं है कि प्रारम्भिक पदार्थ प्राप्त हो । जैसे – कोयले को जलाने पर कार्बनडाई ऑक्साइड गैस बनती है ।
C + O2 → CO2
यहाँ कार्बन व ऑक्सीजन की क्रिया से नये रासायनिक संघटन वाला पदार्थ कार्बनडाईऑक्साइड ( CO2 ) बनता है तथा इस अभिक्रिया में CO2 से पुनः कोयला प्राप्त नहीं किया जा सकता है । इसके अन्य उदाहरण दूध से दही जमना , बनी हुई सब्जी खराब होना , लोहे पर जंग लगना आदि है ।
रासायनिक परिवर्तन के गुण
1 . रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप बनने वाला पदार्थ रासायनिक गुणों व संघटन में प्रारम्भिक पदार्थ से पूर्णतया भिन्न होता है ।
2 . सामान्यतया पुनः प्रारम्भिक पदार्थ प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।
3 . यह परिवर्तन स्थाई होता है ।
4 . नये पदार्थ का निर्माण होता है ।
भौतिक (Bhautik Parivartan) और रासायनिक परिवर्तन में अंतर
रासायनिक परिवर्तन | भौतिक परिवर्तन (Bhautik Parivartan) |
रासायनिक परिवर्तन से बनने वाला पदार्थ रासायनिक गुणों तथा संघटन में प्रारम्भिक पदार्थ से पूर्णतया भिन्न होता है । | पदार्थ के केवल भौतिक गुणों जैसे अवस्था , रंग , गंध आदि में परिवर्तन होता है । |
सामान्यतया प्रारम्भिक पदार्थ पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है । | परिवर्तन का कारण हटाने पर पुनः प्रारम्भिक पदार्थ प्राप्त हो जाता है । |
यह परिवर्तन स्थाई होता है । | यह परिवर्तन अस्थाई होता है । |
इसमें नये पदार्थ का निर्माण होता है । | इसमें नये पदार्थ का निर्माण नहीं होता है | |
उदाहरण – लोहे पर जंग लगना । | उदाहरण – बर्फ ⇋ जल ⇋ वाष्प |
भौतिक राशियों के मात्रक (Units of Physical Quantities)
किसी भौतिक राशि के मापन के लिए नियत किये गये मान को मात्रक कहते हैं ।
मात्रक के प्रकार –
मूल मात्रक | व्युत्पन्न मात्रक |
वे मात्रक जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं । | वे मात्रक जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हैं । |
वे मात्रक जिन्हें किसी अन्य मात्रक में व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता है । | वे मात्रक जिन्हें मूल मात्रकों का उपयोग करके व्युत्पन्न किया जा सकता है । |
उदाहरण – द्रव्यमान ,लम्बाई , समय | उदाहरण – बल , संवेग , कार्य , वेग |
किसी भी भौतिक राशि को व्यक्त करने के लिए उसके आंकिकमान और मात्रक मान की आवश्यकता होती है । यदि कोई भौतिक राशि Q है और उसका आंकिक मान n तथा मात्रक u हो तो उनका गुणनफल नियत रहता है अर्थात् Q = nu = नियतांक अर्थात् किसी भौतिक राशि का आंकिक मान उसके मात्रक के व्युत्क्रमानुपाती होता है । अतः स्पष्ट है कि , ❝ किसी भौतिक राशि का मात्रक जितना छोटा होगा , किसी निश्चित राशि के मापन का आंकिक मान उतना ही अधिक होगा ।❞
यदि एक ही भौतिक राशि के मात्रक क्रमशः u1 , u2 , u3 , . . . . . हों और किसी निश्चित राशि के आंकिक मान क्रमशः n1 , n2 , n3 , . . . . . . हों तो मात्रक एवं संख्यात्मक मान में सम्बन्ध : Q = n1u1 = n2u2 = n3u3 = . . . . . = नियतांक
किसी भी भौतिक राशि का मात्रक चयन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें :
- चयन किये हुए मात्रक , ताप , दाब व समय के परिवर्तन से प्रभावित नहीं हों ।
- चयन किये हुए मात्रक सर्वमान्य , उचित आकार तथा परिमाण के हों ।
- चयनित मात्रक सरलता से परिभाषित किये जा सकें एवं प्रत्येक स्थान पर उनके प्रतिरूप सरलता से बनाये जा सकें ।
मात्रकों की पद्धतियाँ (Systems Of Units)
भौतिक राशियों के मूल मात्रकों के मापन में प्रयुक्त मुख्य मात्रक पद्धतियाँ निम्न हैं । इनमें लम्बाई , द्रव्यमान तथा समय के मूल मात्रक क्रमशः व्यक्त किये जाते हैं –
- C.G.S. ( सेन्टीमीटर – ग्राम – सेकण्ड ) पद्धति या गॉसीय पद्धति
- M.K.S. ( मीटर – किलोग्राम – सेकण्ड ) पद्धति या जॉर्जी ( Gorgi ) पद्धति
- F.P.S. ( फुट – पाउण्ड – सेकण्ड ) पद्धति
- C.G.S. पद्धति या गॉसीय पद्धति – इस पद्धति के अन्तर्गत हम द्रव्यमान , लम्बाई , समय को क्रमशः ग्राम , सेन्टीमीटर , सेकण्ड में नापते हैं ।
- M.K.S. पद्धति – इस पद्धति में द्रव्यमान , लम्बाई , समय को क्रमशः किलोग्राम , मीटर , सेकण्ड में नापते हैं ।
- F.P.S. पद्धति या ब्रिटिश पद्धति – इस पद्धति में द्रव्यमान , लम्बाई , समय को क्रमशः पाउण्ड , फुट , सेकण्ड में नापते हैं ।
मात्रकों की अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति ( S.I. System Of Units )
Bhautik Parivartan यह M.K.S. पद्धति का परिवर्तित व परिवर्धित रूप है । 1960 में अन्तर्राष्ट्रीय माप तथा बाट की सामान्य सभा ने मात्रकों की इस अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति का नामकरण S.I. ( System International )किया तथा इसमें भौतिक राशियों को मूल , व्युत्पन्न तथा पूरक मात्रकों के रूप में वर्गीकृत किया गया । इस पद्धति में सात मूल राशियाँ तथा दो पूरक राशियों के मानक मात्रक परिभाषित किये गये हैं ।
Bhautik Parivartan ऊपर दी गई सभी राशियों में आजकल F.P.S. पद्धति का उपयोग सामान्यतः नहीं किया जाता है एवं C.G.S. का उपयोग भी कम किया जाता है । C.G.S. पद्धति में मात्रक छोटे होते हैं । भौतिक राशि का संख्यात्मक मान बहुत अधिक हो जाता है , जिससे गणना कठिन हो जाती है । आजकल M.K.S. तथा S.I. पद्धति का उपयोग किया जाता है ।
( A ) मूल मात्रक
क्र . सं . | भौतिक राशि का नाम | मात्रक | संकेत ( प्रतीक ) |
1. | द्रव्यमान( Mass ) | किलोग्राम | Kg |
2. | लम्बाई ( Length ) | मीटर | m |
3. | समय ( Time ) | सेकण्ड | s |
4. | ताप ( Temperature ) | केल्विन | K |
5. | विद्युत धारा ( Electric Current ) | ऐम्पियर | A |
6. | प्रदीपन तीव्रता ( Luminous Intensity ) | केण्डेला | Cd |
7. | पदार्थ की मात्रा ( Quantity of Matter ) | मोल | mol |
( B ) व्युत्पन्न मात्रक
Bhautik Parivartan मूल मात्रकों पर आधारित कुछ सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली भौतिक राशियों के मात्रक कोष्ठकों में लिखे गये चिह्न द्वारा दिये गये हैं ।
क्र . सं . | भौतिक राशि का नाम | मात्रक | संकेत ( प्रतीक ) |
1. | बल का मात्रक | न्यूटन ( N ) | kgm/s2 |
2. | ऊर्जा या कार्य का मात्रक | जूल ( J ) | Nm |
3. | शक्ति का मात्रक | वॉट ( W ) | J / s |
4. | दाब का मात्रक | पास्कल ( P ) | N / m2 |
5. | विद्युत आवेश का मात्रक | कूलॉम ( C ) | As |
6. | विभवान्तर का मात्रक | वोल्ट ( V ) | W / A J / As J / C |
7. | विद्युत प्रतिरोध का मात्रक | ओम ( Ω ) | V / A |
8. | विद्युत धारिता का मात्रक | फैरड ( F ) | C / V |
9. | विद्युत प्रेरकत्व का मात्रक | हैनरी ( H ) | Ωs |
10. | चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक | वेबर ( Wb ) | Vs Nm / A J/ A |
11. | चुम्बकीय फ्लक्स का घनत्व | टेस्ला ( T ) | Wb / m2 N / Am |
12. | प्रदीप्ति फ्लक्स या दीप्त शक्ति का मात्रक | ल्यूमैन ( lm ) | cd / Sr |
13. | प्रदीप्तन या प्रदीप्त घनत्व का मात्रक | लक्स ( lx ) | lm / m2 |
( C ) पूरक मात्रक
क्र . सं . | भौतिक राशि का नाम | मात्रक | संकेत ( प्रतीक ) |
1. | समतल कोण ( तलीय कोण ) | रेडियन | rad |
2. | ठोस कोण या धन कोण | स्टेरेडियन | sr |
महत्त्वपूर्ण तथ्य
( i ) विद्युत धारा को मूल राशि लेने पर इसका मात्रक ऐम्पियर (A) तब पद्धति MKSA कहलाती है ।
( ii ) आवेश Q को शामिल करने पर इसका मात्रक कूलॉम तब पद्धति MKSQ कहलाती है ।
मूल मात्रकों की अन्तर्राष्ट्रीय परिभाषाएँ (International Definitions Of Fundamental Units )
( 1 ) मीटर ( Meter )
एक मीटर वह दूरी है जिसमें Kr86 से निर्वात में उत्सर्जित नारंगी लाल प्रकाश की 1,650,763,73 तरंगें स्थित होती हैं एवं दूसरे शब्दों में , 1 मीटर वह दूरी है जो प्रकाश निर्वात में 1 \ 299,792,458 सेकण्ड में तय करता है ।
( 2 ) किलोग्राम ( Kilogram )
एक किलोग्राम अन्तरराष्ट्रीय बांट व माप संस्था पेरिस में रखे प्लेटिनम – इरेडियम के एक विशेष बेलन के द्रव्यमान के बराबर है । यह 4°C पर एक लीटर जल के द्रव्यमान के बराबर होता है । एक किलोग्राम मात्रा , C12 के 5 × 1025 परमाणुओं के द्रव्यमान के बराबर होती है ।
( 3 ) सेकण्ड ( Second )
यह वह समय है जिसमें सीजियम – 133 ( Cs133 ) परमाणु 9 , 192 , 631 , 770 बार कम्पन करता है । परमाणु घड़ियाँ इस परिभाषा पर आधारित होती हैं , वे समय का यथार्थ मापन करती हैं और उनमें केवल 5000 वर्षों में एक सेकण्ड की त्रुटि हो सकती है ।
( 4 ) ऐम्पियर ( Ampere )
यह विद्युत धारा का मात्रक लिया गया है । एक ऐम्पियर वह नियत विद्युतधारा है , जो निर्वात में एक मीटर दूरी पर रखे दो सीधे समान्तर अनन्त लम्बाई व नगण्य त्रिज्या वाले तारों में प्रवाहित होने पर उनके मध्य प्रति इकाई लम्बाई पर लगने वाला बल 2 × 10 -7 न्यूटन / मी . उत्पन्न करे ।
( 5 ) केल्विन ( Kelvin )
सामान्य वायुमण्डलीय दाब पर जल के क्वथनांक एवं बर्फ के गलनांक के अन्तर का 1 \ 100 वाँ भाग 1 केल्विन ताप कहलाता है । जल के त्रिक बिन्दु ( 273 . 16 केल्विन ) ताप पर ऊष्मागतिक ताप का 1 \ 273.16 वाँ भाग 1 केल्विन कहलाता है । इसका प्रतीक K है । ताप को केल्विन में व्यक्त करने में डिग्री (°) नहीं लिखते । उदाहरणार्थ , कमरे का ताप 304 K है , इसे 304°K लिखना गलत है ।
( 6 ) केन्डेला ( Candela )
यह प्रदीपन तीव्रता का मात्रक लिया गया है । एक केन्डेला उस प्रदीपन तीव्रता की मात्रा है जो 1 \ 6,00,000 वर्गमीटर क्षेत्रफल वाली कृष्ण वस्तु से लम्बवत् उत्सर्जित होती है , जबकि कृष्ण वस्तु ( black body ) का दाब 101 , 325 न्यूटन / मी .2 तथा ताप , प्लेटिनम के गलनांक ( 2046 K ) के बराबर होता है |
( 7 ) मोल ( Mole )
1 मोल पदार्थ की वह मात्रा ( द्रव्यमान ) है , जिसमें मूल अवयवों की संख्या उतनी हो जितनी कि 6C12 के 0 . 012 किलोग्राम मात्रा में कार्बन परमाणुओं की होती है । इस संख्या को ऐवोगैड्रो संख्या NA = 6.02 × 1023 प्रति ग्राम मोल कहते हैं ।
पूरक मात्रकों की परिभाषाएँ ( Definitions Of Supplement Units )
अन्तरराष्ट्रीय पद्धति में कोण ( Angle ) तथा ठोस या धन कोण को पूरक राशि एवं इनके मात्रक क्रमशः रेडियन ( radian ) व स्टेरेडियन ( steradian ) को पूरक मात्रक माना गया है ।
( 1 ) रेडियन ( Radian )
- किसी वृत्त की त्रिज्या के बराबर के चाप द्वारा वृत्त के केन्द्र पर अंतरित कोण , 1 रेडियन के बराबर होता है ।
- समतल कोण dθ = ( ds \ r) रेडियन
- यदि ds = r हो तो dθ = 1 रेडियन
( 2 ) स्टेरेडियन ( Steradian )
यह ठोसीय कोण को मापने का मात्रक है । इसका प्रतीक sr है । किसी गोले के पृष्ठ पर उसकी त्रिज्या r के बराबर भुजा वाले वर्गाकार क्षेत्रफल r2 द्वारा गोले के केन्द्र पर बनाये गये धन कोण को 1 स्टेरेडियन कहते हैं । इसे Ω या ω से व्यक्त करते हैं । किसी केन्द्र बिन्दु पर बनने वाली ठोस कोण 4π होता है ।
- धन कोण = ω या Ω = A \ r2
- जब A = r2 हो तो ω = Ω = 1 स्टेरेडियन
S.I.पद्धति की विशेषताएँ ( Merits Of S.I. System )
( 1 ) यह मैट्रिक या दशमलव पद्धति है ।
( 2 ) इस पद्धति में मात्रक अचर तथा उपलब्ध मानकों पर आधारित है ।
( 3 ) ये सभी मात्रक सुपरिभाषित एवं पुनः स्थापित होने वाले हैं ।
( 4 ) S.I. पद्धति विज्ञान की सभी शाखाओं में प्रयोग की जा सकती है । परन्तु M.K.S. पद्धति को केवल यांत्रिकी में प्रयोग किया जा सकता है ।
( 5 ) इस पद्धति में सभी भौतिक राशियों के व्युत्पन्न मात्रक केवल मूल मात्रकों को गुणा एवं भाग करके प्राप्त हो सकते हैं ।
( 6 ) यह मात्रकों की परिमेयकृत पद्धति है अर्थात् इस पद्धति से एक भौतिक राशि के लिए एक ही मात्रक का उपयोग होता है ।
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नोट –
यांत्रिकी में लम्बाई , द्रव्यमान तथा समय को लिया गया है , परन्तु हम यांत्रिकी में कोई भी तीन राशियाँ मूलभूत राशियों की तरह ले सकते हैं तो अन्य राशियाँ भी इनके पदों में व्यक्त की जा सकती हैं ।
उदाहरण के लिए , यदि चाल तथा समय को मूलभूत राशियों के रूप में लिया जाये तो लम्बाई व्युत्पन्न राशि बन जाती है क्योंकि लम्बाई को हम चाल × समय के रूप में व्यक्त करते हैं तथा यदि बल तथा त्वरण मूलभूत राशियाँ ली जायें तो द्रव्यमान को बल/त्वरण से परिभाषित किया जायेगा तथा यह व्युत्पन्न राशि कहलायेगी ।
Bhautik Parivartan भौतिक परिवर्तन | :- आशा करता हूं कि हमारे द्वारा डाली गई यह पोस्ट जो कि भौतिक परिवर्तन (Bhautik Parivartan) को स्पष्ट रुप से बताने के लिए डाली गई है, आपको पढ़ने के बाद अच्छी लगी होगी।
Bhautik Parivartan जिससे आप को समझने में आसानी हो और आपको भौतिक परिवर्तन को समझने में किसी भी प्रकार की परेशानी आ रही है तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के माध्यम से आप उस समस्या को हमसे पूछ सकते है